डार्क हॉर्स
को एक ऐसी गंध आई जिसे उसने इससे पहले कभी महसूस नहीं किया था। एकदम नया विनहा फ्लेवर था। दुगंध में भी इतनी वेराइटी होती है यह संतोष ने अभी-अभी जाना था ऐसी दुर्गंध भागलपुर सब्जी मंडी में बरसात के दिनों में भी नहीं संधी थी उसने। ओकाई आने लगी पर मजबूरी में अगले ही क्षण उसने अपने स्नायु तंत्रों पर नियंत्रण कर उस दुर्लभ दुर्गंध से अनुकूलता बिठाकर खुद को एडजस्ट कर लिया था। दिल्ली उतरते ही समझौतावादी हो गया था बेचारा संतोष।
" आपको कुछ महका क्या संतोष भाई?" रायसाहब ने संतोष को नाक सिकोड़ते
देखते ही पूछा।
"नहीं-नहीं! रूम बंद होगा न, इसलिए वैसे ठीक है।" संतोष ने नाक पर एक हाथ
फिराकर कहा
" अरे जब आपका फोन आया तब हम खाना का टिफिन खोले थे, ऐसे ही खुला छोड़ निकल गए। वही थोड़ा स्मेल मार रहा है।" रायसाहब ने खुले टिफिन को चटाई से हटाते हुए कहा।
संतोष के लिए सोचना लाजिमी था कि जब खाना ऐसा गंध कर रहा है तो बाथरूम की दशा क्या होगी। संतोष को रूम पर बिठाकर राय जी दूध का पैकेट लाने नीचे चले गए। संतोष ने कुर्सी पर बैठे-बैठे एक नजर उस पूरे कमरे पर दौड़ाई। दरवाजे से घुसते ही
बाई और दुर्लभ शौचालय था उसकी दशा देख कोई भी रायसाहब के सामाजिक दायरे का अंदाजा लगा सकता था। दुर्गंध बता रही थी कि दिन भर में कम-से-कम पंद्रह लोग जरूर उस बाथरूम में मूतने जाते होंगे, वो भी बिना पानी डाले। बाथरूम से बाहर एक बेसिन था जिसमें नल के पास चप्पले खाँसी हुई थी। पान की पीक और गुटखा ऐसा अटा पड़ा था जैसे बौरसिया पान भंडार का पिछवाड़ा हो। किचन में अखबार और जूते रखे हुए थे. चूँकि खाना टिफिन का आता था सो वहाँ कुछ और रखने का मतलब नहीं था। कभी- कभार इमरजेंसी के लिए एक छोटा सिलेंडर और कुछ समझ नहीं आने वाली सामग्री एक कोने में रखी हुई थी। कमरे के अंदर एक कोने पर एक रेक में मोटी-मोटी विशालकाय किताबें रखी हुई थी। एक बैंक के निचले शेल्फ में एनसीईआरटी की किताबें और उसके ऊपर बादाम का डिब्बा रखा हुआ था। दूसरे शेल्फ पर घी की शीशी, बनफूल तेल, इसबगोल की भूसी और बाल झड़ने की कुछ दवाइयाँ रखी हुई थी। ऊपर के शेल्फ पर एक बड़ा-सा दर्पण, पतंजलि का फेसवाश, पतंजलि का मुरब्बा पतंजलि का दंतकांति टूथपेस्ट, पतंजलि का आँवला जूस, मुल्तानी मिट्टी, घृतकुमारी तेल और पतंजलि की अजवाइन एवं हरड़ पाचक रखे हुए थे। पतंजलि के इतने सारे प्रोडक्ट देखकर कोई भी कह सकता था कि शायद पतंजलि का यूपीएससी के साथ कोई व्यापारिक करार हुआ हो। बैड से सटे टेबल पर पत्र-पत्रिकाओं का एक बड़ा-सा टीला खड़ा था। दीवार पर एक तरफ भारत और विश्व के नक्शे चिपके हुए थे और उन पर कई विशेष जगहों पर लाल हरे स्केच से गोले किए हुए थे, जैसे किसी गई खजाने की खोज का मिशन हो। दीवार पर एक तरफ हनुमान जी और माँ काली की बड़ी सी तस्वीर ब्लैक टेप से चिपकाई गई थी। बैड के सिरहाने पंद्रह-बीस पन्नों में लिखे सिलेबस को साटा गया था जो जगह बची हुई थी, वहाँ मुख्य खबर वाली अखबार की कतरन को साट दिया गया था। पूरे कमरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे पहाड़ी दवाखाने वाले वैद्य का तबू हो पच्चीस गज के इस कमरे में